राष्ट्र-ऋषि नानाजी देशमुख
अब से सौ वर्ष पूर्व 11 अक्टूबर 1916 को शरद पूर्णिमा को नानाजी देशमुख का जन्म हुआ। उनके पिताजी का नाम अमृतराव देशमुख और माताजी का नाम राजाबाई था।
1939 में वे राजस्थान के पिलानी बिड़ला कॉलेज में अध्ययन के लिए गए। कॉलेज में उनके नेतृत्व के गुण तथा उनमें छिपी हुई अपार क्षमता के कारण कॉलेज के संस्थापक सेठ घनश्याम दास बिड़ला ने कॉलेज के प्रिंसिपल से अनुमति लेकर
अपने निजी सहायक के रूप में नियुक्ति दी।
1945 में तृतीय वर्ष शिक्षण पूरा करके वे गोरखपुर विभाग में संघ-कार्य में जुट गए। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गौरखपुर में नानाजी को भी गिरफ्तार किया गया।
शिक्षा एवं ज्ञान के प्रति नानाजी का गहरा लगाव ही था जिसके कारण उनकी प्रेरणा से 1952 मे गोरखपुर (उतर प्रदेश ) में देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर स्थापित किया गया। इस प्रेरणा से ही चित्रकूट जैसे पिछड़े प्रामीण इलाके में समग्र विकास का लक्ष्य लेकर उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से ग्राम विकास को अपना सपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। चित्रकूट मे ही देश के प्रथम विश्वविद्यालय की स्थापना कर उसके प्रथम कुलपति का दायित्व भी उन्होंने निभाया।
नानाजी ने 93 साल की उम्र तक दीनदयाल शोध संस्थान के अपने सहयोगी के साथ मध्य भारत के 500 पिछड़े ग्रामों के पूर्ण विकसित एवं सशक्त बनाने का सफल प्रमोग किया।
कर्म नानाजी का साक्षात ईश्वर था, वह साक्षात दीनदयाल थे। शनिवार 27,फरवरी 2010 को उनका शरीर शान्त हो गया।
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